क्या विभिन्न सांस्कृतिक विचारधाराओ, को ख़त्म कर देना भारत की आत्मा को ख़त्म करना है? क्या अपना एजेंडा बलपूर्वक लागु करना सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को परिभासित करता है। एक राजनैतिक लेखक ,सुधीन्द्र कुलकर्णी के चेहरे को स्याही से पोतकर अपमानित किया गया शिव सैनिक के इस कृत्य, को विरोध का अहिंसक तरीके की संज्ञा दिया जाना कहां तक जायज है ?जहाँ दादरी कांड के विरोध में देश के बुद्धिजीवी लेखको का राष्ट्रीय पुरुस्कार, सरकार को लौटाने का सिलसिला जारी है ,वही इस घटना ने अंतर्मन को चोटिल कर दिया है. विचारधाराओ की स्वतंत्रता, लोकतान्त्रिक देश की प्राणवायु होती है,विरोध की ऐसी घटना से देश शर्मसार होता है!लेकिन राजनैतिक पार्टियां सिर्फ अपना हित देखती है क्योंकि सत्ता, सर्वोपरि होता है ज़रूरत है हमारी लोकतांत्रिक मूल्यों, की भी अनदेखी ना की जाए और वैश्विक स्तर हमारी बहुलतावादी छवि बनी रहें .