दादरी हत्याकांड से उपजे विवाद ने एक बार फिर भारत के माथे पर कलंक लगाया। प्रतिबंधित पशु गाए की हत्या के अफवाह से पैदा विवाद ने इलाके को दंगे की चपेट में ले लिया। इस खबर पर भारत के साथ-साथ विदेशी मीडिया ने भी इसे प्रमुखता लिया। प्रश्न ये है की मंदिर के लाउड स्पीकर से गौ हत्या की खबर प्रसारण की गई तो क्या मोबाइल से दादरी थाने में सूचना नहीं दी जा सकती थी ?? सीधे कानून को अपने हाथ में ले लेना ठीक नहीं था.आतताइयों ने बुजुर्ग अख़लाक़ की हत्या पीट -पीट कर दी ये ये भी नहीं देखा की इस परिवार का सदस्य वायुसेना में रह कर देश सेवा कर रहा है । बहरहाल फ़िज़ा मे जहर घुल चुका है,अख़लाक़ के परिवार दादरी छोड़ दिल्ली के वायु सैनिक परिसर में सिफ्ट हो गया है। अखिलेश सरकार ने मुआवजे का मरहम लगा दिया है जो वो हमेशा करती आई है। नेताओ, की जहरीली बयानबाजियों से शांतिप्रिय वर्ग व्यथित है तो वही प्रधानमंत्री मोदी जी का मौन धारण कर लेना भी समझ से परे है। बिहार चुनाव तक इस दादरी कांड को ईंधन मिलता रहेगा क्योंकि नेताओ को सिर्फ अपनी सत्ता और कुर्सी की फ़िक्र रहती है, वो इस मानवता को शर्मशार कर देने वाली घटना में भी राजनितिक स्वार्थ सिद्धि करेंगे,जनता भली -भांति जानती है ।
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